पिछले तीन साल में हर घंटे काटे गए तीन पेड़, हाईकोर्ट को दिल्ली सरकार ने दी जानकारी

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दिल्ली उच्च न्यायल को सोमवार को अवगत कराया गया कि राष्ट्रीय राजधानी में पिछले तीन साल के दौरान हर घंटे तीन पेड़ काटे गए और इस आकलन में पेड़ों की अवैध कटाई के मामले शामिल नहीं हैं। शहर में वृक्षों के संरक्षण से संबंधित अवमानना के मामले में सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति नाजमी वजीरी की पीठ को बताया गया कि दिल्ली सरकार के वन विभाग की ओर से दायर किये गये हलफनामे के मुताबिक वर्ष 2019, 2020 और 2021 में कुल मिलाकर 77420 वृक्षों को काटने की अनुमति दी गई।

इस मामले में अधिवक्ता ने कहा कि यदि अवैध रूप कटे गये पेड़, वन निकासी के लिए काटे गए पेड़, ऐसे पेड़ों की कटाई जिन पर किसी का ध्यान नहीं गया और तूफान आदि के कारण गिरने वाले पेड़ों की संख्या को भी शामिल कर लिया जाए, तो नष्ट हुए पेड़ों के आंकड़े मौजूदा 77 हजार का दो या चार गुना हो सकते हैं। अदालत ने पाया कि दिल्ली शहर 77,000 पेड़ों को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता है और याचिकाकर्ता की गणना पर वन विभाग से रुख स्पष्ट करने को कहा। याचिकाकर्ता के जानकार अधिवक्ता आदित्य एन प्रसाद ने इस गणना से अदालत को अवगत कराया। अधिवक्ता ने दिल्ली सरकार के वन विभाग द्वारा दायर हलफनामे के आधार पर अदालत को बताया कि वर्ष 2019, 2020, 2021 में , 77420 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई यानी पिछले तीन वर्षों में प्रति घंटे लगभग तीन पेड़ काटे गये।

अधिवक्ता ने यह भी बताया कि ये आंकड़े केवल उन पेड़ों के लिए हैं जिन्हें दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम की धारा 9, 29 के तहत काटे जाने की अनुमति दी गई थी। अदालत ने आदेश दिया कि वन विभाग लापता आंकड़ों पर एक हलफनामा दायर करे और हर घंटे तीन पेड़ों के खोने के आंकड़े पर अपनी प्रतिक्रिया दे। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि शहर के एक निश्चित क्षेत्र में की गई ‘हरित जनगणना’ के अनुसार 77 पेड़ गायब पाए गए और अधिकारियों द्वारा सत्यापन के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 177 हो गया। नीरज शर्मा की वर्तमान अवमानना ​​याचिका पूर्वी दिल्ली के विकास मार्ग इलाके में पेड़ों की संख्या से संबंधित है। अदालत ने कहा कि वह अवमानना के इस मामले में अगली सुनवाई 13 जुलाई को करेगी। इसके पहले तीन जून को अदालत ने पेड़ों के संरक्षण और बचाव से जुड़े मामले में न्यायिक आदेश की अवहेलना करने को लेकर लोकनिर्माण विभाग के कुछ अधिकारियों और दिल्ली पुलिस के एक कर्मचारी को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था।

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